क्या होती है भद्रा, और क्यों इसे अशुभ माना जाता है?
जानिए भद्रा की शुभता एवं अशुभता एवं महत्व...... .
किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा योग का विशेष ध्यान रखा जाता है, क्योंकि भद्रा काल में मंगल-उत्सव की शुरुआत या समाप्ति अशुभ मानी जाती है अत: भद्रा काल की अशुभता को मानकर कोई भी आस्थावान व्यक्ति शुभ कार्य नहीं करता। इसलिए जानते हैं कि आखिर क्या होती है भद्रा? और क्यों इसे अशुभ माना जाता है? पुराणों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और राजा शनि की बहन है। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी कड़क बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनीतिक चुनाव कार्य सुफल देने वाले माने गए हैं।
हिन्दू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं।
ये हैं- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है। पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है। यूं तो 'भद्रा' का शाब्दिक अर्थ है 'कल्याण करने वाली' लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या या उनका नाश करने वाली मानी गई है। जब चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टि करण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इसके दोष निवारण के लिए भद्रा व्रत का विधान भी धर्मग्रंथों में बताया गया है।
रक्षाबंधन कब मनाएं ?
सनातन धर्म में हर वर्ष श्रावण पूर्णिमा तिथि पर रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और उनके उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना करती हैं। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। पंचांग के अनुसार, इस वर्ष रक्षाबंधन के दिन पंचक और भद्रा काल का निर्माण हो रहा है। ऐसे में लोगों के मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि रक्षाबंधन पर्व 30 अगस्त या 31 अगस्त के दिन मनाया जाएगा ? आइए जानते हैं रक्षाबंधन पर्व की सही तिथि और शुभ मुहूर्त।
रक्षाबंधन 2023 का शुभ मुहूर्त पंचांग के अनुसार,
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त को सुबह 10 बजकर 58 मिनट से प्रारंभ होगी और इसका समापन 31 अगस्त सुबह 07 बजकर 05 मिनट पर होगा। इस दिन भद्रा काल का भी निर्माण हो रहा है जो रात्रि 09 बजकर 01 मिनट तक रहेगा। शास्त्रों में बताया गया है कि रक्षाबंधन का पर्व भद्रा काल के समय नहीं मनाना चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना जाता है। इसलिए इस वर्ष रक्षाबंधन पर्व दो दिन मान्य होगा। राखी बांधने के लिए शुभ मुहूर्त 30 अगस्त रात्रि 09 बजकर 02 मिनट से प्रारंभ होगा। साथ ही जो लोग 30 तारीख को राखी नहीं बंधवा पाएं हों , वह अगले दिन सुबह 07 बजकर 05 मिनट से पहले रक्षाबंधन मना सकते हैं। जय श्री राम , जय गोविंदा , ॐ नमः शिवाय
Comments
Post a Comment